India-Pakistan: BSF जवान पूर्णम कुमार शॉ की घर वापसी

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India-Pakistan के इतनी गरमा-गर्मी व्यवहार के दौरान 23 अप्रैल 2025 को, ड्यूटी के दौरान पंजाब के फाजिल्का सेक्टर में पेट्रोलिंग करते हुए गलती से अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर पाकिस्तान की सीमा में पहुंच गए। पश्चिम बंगाल के रहने वाले BSF जवान पूर्णम कुमार शॉ ने कभी नहीं सोचा था कि एक छोटी सी चूक उन्हें पाकिस्तान की सीमा तक पहुंचा देगी। यह गलती बेहद आम होती है, क्योंकि बॉर्डर पर कई जगहों पर चिन्ह या तार साफ़ दिखाई नहीं देते है। वहां की परिस्थिति और मौसम कई बार जवानों को भ्रमित कर देती हैं। जैसे ही यह घटना हुई, पाकिस्तान के रेंजर्स ने उन्हें अपनी हिरासत में ले लिया। भारत सरकार को तुरंत सूचना दी गई और मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए विदेश मंत्रालय और BSF ने मिलकर कार्रवाई शुरू की।

22 दिनों की बेचैनी और शॉ परिवार का संघर्ष

पूर्णम कुमार शॉ की सीमा पार करने की खबर जब उनके परिवार को मिली तो उनका जीवन मानो थम गया हो। सबसे अधिक परेशान उनकी पत्नी रजनी शॉ को थीं। उन्होंने हर जगह गुहार लगाई, BSF ऑफिस, स्थानीय विधायक, यहां तक कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक। रजनी ने साफ़ शब्दों में कहा कि वे अपने सुहाग को वापस लाकर ही चैन लेंगी। उन्होंने मीडिया से भी अपील की कि वे उनकी बात को सरकार तक पहुँचाएं। उनका दर्द और विश्वास हर किसी को छू गया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उनसे फोन पर बात की और भरोसा दिलाया कि वे इस मुद्दे को केंद्र सरकार तक पहुँचाएंगी और हर संभव मदद करेंगी। पूरा देश इस दौरान जवान की सुरक्षित वापसी की उम्मीद कर रहा था।

India-Pakistan का डिप्लोमैटिक प्रयास और समझौता

India-Pakistan के बीच वर्षों से तनाव रहा है, लेकिन इस घटना में दोनों देशों ने मानवता की मिसाल पेश की। जैसे ही पाकिस्तान की तरफ से बताया गया कि, जवान सुरक्षित है, भारत ने बातचीत शुरू की। पाकिस्तान की तरफ से यह संकेत मिला कि अगर भारत एक पाकिस्तानी रेंजर को वापस करता है, जिसे 3 मई को भारत में पकड़ा गया था, तो वे पूर्णम को छोड़ सकते हैं। इस प्रस्ताव को भारत सरकार ने गंभीरता से लिया और दोनों पक्षों में सहमति बनी। 14 मई को अटारी-वाघा बॉर्डर पर दोनों देशों ने अपने-अपने जवानों को एक-दूसरे को सौंप दिया। यह एक बड़ा कूटनीतिक कदम था, जिससे दोनों देशों के बीच थोड़ी नरमी भी देखने को मिली। इससे साबित होता है कि India-Pakistan चाहें तो बातचीत और समझदारी से बड़ी से बड़ी समस्या सुलझाई जा सकती है।

पूर्णम कुमार शॉ की वापसी के बाद आंखों में आंसू, दिल में खुशी

जब पूर्णम कुमार शॉ भारत लौटे तो उनका स्वागत पूरे सम्मान और भावना के साथ हुआ। उनकी पत्नी रजनी ने मीडिया से बात करते हुए कहा, प्रधानमंत्री मोदी जी ने मेरे सुहाग को वापस लाया है। मैं उनकी हमेशा आभारी रहूंगी। यह शब्द किसी भी इंसान को भावुक कर सकते हैं। उनके माता-पिता, परिवार और गांववालों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया। सोशल मीडिया पर भी उनके लिए शुभकामनाओं की बाढ़ आ गई। यह एक ऐसा पल था, जिसने यह दिखा दिया कि हमारे जवानों की सुरक्षा और सम्मान देश के लिए सबसे ऊपर है। यह केवल एक सैनिक की वापसी नहीं थी, यह पूरे देश की जीत थी।

BSF: हमारे देश के सुरक्षा की पहली दीवार

BSF भारत की सीमाओं की रक्षा करने वाली एक प्रमुख सुरक्षा एजेंसी है, जिसकी स्थापना 1965 में की गई थी। इसका मुख्य कार्य है पाकिस्तान और बांग्लादेश की सीमाओं पर शांति बनाए रखना, घुसपैठ रोकना और तस्करी जैसे अपराधों को रोकना। BSF के जवान बेहद कठिन परिस्थितियों में दिन-रात ड्यूटी करते हैं। उन्हें गर्मी, सर्दी, बारिश और दुश्मन की चालों का सामना करना पड़ता है। पूर्णम कुमार जैसी घटनाएं हमें यह याद दिलाती हैं कि ये जवान किन मुश्किलों से गुजरते हैं और हमारे लिए कितना बलिदान देते हैं। ऐसी घटनाएं यह भी दिखाती हैं कि सीमा पर तैनात जवान केवल हथियार से नहीं, बल्कि साहस और धैर्य से भी लड़ते हैं।

India-Pakistan के मौजूदा तनाव और उसका प्रभाव

यह घटना ऐसे समय पर हुई जब India-Pakistan के संबंध पहले से ही तनावपूर्ण थे। एक दिन पहले ही, यानी 22 अप्रैल को, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की जान गई थी। इसके बाद भारत ने ऑपरेशन ‘सिंदूर’ चलाया, जिसमें पाकिस्तान के आतंकी अड्डों को निशाना बनाया गया। ऐसे माहौल में जब पूर्णम कुमार पाकिस्तान में थे, तब उनके साथ किसी भी प्रकार का दुराचार न होना और उनका सुरक्षित वापस आना इस बात की ओर इशारा करता है कि दोनों देशों में अब भी संवाद की गुंजाइश बाकी है। यह घटना एक सकारात्मक संकेत थी कि मानवीय पहलू को कभी-कभी कूटनीति से ऊपर रखा जा सकता है।

इस घटना में मीडिया और जनता की भूमिका

पूर्णम कुमार की रिहाई में मीडिया और आम लोगों की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही। उनकी पत्नी ने जैसे ही मीडिया से बात की, पूरे देश ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया। सोशल मीडिया पर #BringBackOurJawan जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। हजारों लोगों ने ट्वीट और पोस्ट के जरिए सरकार से अपील की कि वे जवान को वापस लाएं। जनता की यह एकजुटता और समर्थन सरकार के लिए एक स्पष्ट संदेश था। साथ ही, मीडिया ने लगातार इस मुद्दे को कवर कर जनता को जागरूक बनाए रखा। इससे यह साबित होता है कि जब जनता एक साथ खड़ी होती है, तो कोई भी सरकार जवाब देने के लिए मजबूर होती है।

India-Pakistan की एक छोटी चूक, बड़ी सीख

इस घटना से हमें कई महत्वपूर्ण सीख मिलती हैं। सबसे पहली बात यह है कि सीमा पर तैनात जवानों को बेहतर GPS और तकनीकी सहायता उपलब्ध करानी चाहिए, जिससे इस तरह की अनजानी गलतियां न हों। दूसरी बात, ऐसी घटनाओं के लिए दोनों देशों के बीच एक स्पष्ट और इमरजेंसी संवाद प्रक्रिया होनी चाहिए, जिससे जवानों की जान खतरे में न पड़े। और तीसरी बात, यह घटना बताती है कि मानवीय संवेदनाएं कूटनीतिक तनाव से बड़ी होती हैं। यह कहानी केवल एक जवान की वापसी नहीं, बल्कि दोनों देशों की संवेदनशीलता और समझदारी की मिसाल है।

पूर्णम कुमार शॉ की कहानी हमें यह याद दिलाती है कि चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों न हों, उम्मीद और प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाते। यह केवल एक BSF जवान की वापसी नहीं थी, बल्कि एक पत्नी के विश्वास, एक परिवार की प्रार्थना, एक सरकार की कार्यशैली, और दो देशों की समझदारी की जीत थी। ऐसी घटनाएं हमें प्रेरित करती हैं कि मानवता अभी भी जिंदा है। और सबसे बड़ी बात यह हमारे देश के जवानों की कुर्बानियों को सलाम करने का एक और मौका है। हमें गर्व है कि हम ऐसे सैनिकों के देशवासी हैं, जो हमारी रक्षा के लिए हर दिन सीमाओं पर अपनी जान जोखिम में डालते हैं।

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